Sunday 14 October 2012

सुरभित सुमन सुगंध, संग में कंटक भेदन-




धारा वर विज्ञान का, किन्तु बना अभिशाप ।
यांत्रिकता बढती चली, भेद पुण्य को पाप ।  
भेद पुण्य को पाप, साफ़ गंगा खो जाती ।
कलुषित नर'दा रोर, नार'की भोग भुगाती । 
कामप्रेत के कर्म, करे नर से नर'दारा ।
चुड़ैल की अघ-देह,  बने खारा जलधारा ।

 पावन श्रम-कण लवणता, मीठा-पन सम स्नेह ।
यही दर्द क्वथनांक है, जलती थाली देह ।
जलती थाली देह , बना करुनामय चटनी ।
धी-घृत से हररोज, चूरमा बेकल-मखनी  ।
अरमानों की महक, ठगे-दिल का दे चूरन ।
पति पर गर कुछ खीस, पुत्र कर दे मन पावन ।।

गई किताबें हैं कहाँ, जाती झटका खाय ।
शादी उसकी क्या हुई, पुस्तक गईं लुटाय । 
पुस्तक गईं लुटाय, पुस्तकें  सखी सहेली ।
बचपन से हुलसाय, साथ इनके ही खेली ।
शादी ख़ुशी मनाय, दर्द यह कैसे दाबे ।
वापस दो लौटाय, जहाँ भी गई किताबें ।।


  शब्द निवेदन में यही, यही शब्द सन्देश |
कविता हो जाते अगर, बढ़ता भावावेश |
बढ़ता भावावेश, माध्यम अच्छा पाया ।
बसे दूर परदेश, पिया के पास पठाया । 
सुरभित सुमन सुगंध, संग में कंटक भेदन ।
शब्द भाव बिन व्यर्थ, बाँचिये शब्द निवेदन ।।


भाव सार्थक गीत के, आवश्यक सन्देश ।
खुद को सीमित मत करो, चिंतामय परिवेश ।
चिंतामय परिवेश, खोल ले मन की खिड़की ।
जो थोड़ा सा शेष,  सुनो उसकी यह झिड़की ।
पालो सेवा भाव, साध लो हित जो व्यापक ।
बगिया वृक्ष सहेज, तभी ये भाव सार्थक ।।

4 comments:

  1. शब्द निवेदन में यही, यही शब्द सन्देश |
    कविता हो जाते अगर, बढ़ता भावावेश |
    बढ़ता भावावेश, माध्यम अच्छा पाया ।
    बसे दूर परदेश, पिया के पास पठाया ।
    सुरभित सुमन सुगंध, संग में कंटक भेदन ।
    शब्द भाव बिन व्यर्थ, बाँचिये शब्द निवेदन ।।

    बहुत सुन्दर शब्द प्रयोग -शब्द भाव बिन व्यर्थ ,भावना इनपे भारी ...
    ram ram bhai
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    सोमवार, 15 अक्तूबर 20

    12
    भ्रष्टों की सरकार भजमन हरी हरी ., भली करें करतार भजमन हरी हरी .http://veerubhai1947.blogspot.com

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